प्रकाश सिंह बादल का 95 वर्ष की उम्र में निधन, लगातार 25 सालों तक संभाली थी पंजाब की सत्ता; राष्ट्रीय शोक घोषित
शिरोमणि अकाली दल के संरक्षक और पंजाब के पांच बार मुख्यमंत्री रहे प्रकाश सिंह बादल का मंगलवार को निधन हो गया। 95 वर्षीय बादल को सांस लेने में तकलीफ की शिकायत के बाद एक सप्ताह पहले मोहाली के फोर्टिस अस्पताल में भर्ती कराया गया था। बादल का जन्म 8 दिसंबर 1927 को श्री मुक्तसर साहिब के गांव बादल में हुआ था। गांव के सरपंच से उन्होंने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की थी।
पिछले साल से चल रहे थे बीमार
बीते साल जून 2022 में भी बादल को सीने में दर्द के बाद अस्पताल में दाखिल करवाया गया था। कुछ समय बाद उन्हें छुट्टी तो मिल गई, लेकिन सितंबर 2022 को उन्हें फिर उनका स्वास्थ्य खराब होने के बाद पीजीआई में दाखिल किया गया। लगभग छह माह बाद उन्हें दोबारा अस्पताल लाया गया।
बादल ने 2022 में लड़ा था आखिरी चुनाव
प्रकाश सिंह ने अपना आखिरी चुनाव 2022 में लड़ा था। यह इतिहास में पहली बार था कि उन्हें हार का सामना करना पड़ा। यह चुनाव लड़ने के बाद वह सबसे अधिक उम्र के चुनाव लड़ने वाले नेता बन गए थे। प्रकाश सिंह बादल ने 1947 में राजनीति में कदम रखा। शुरुआत में उन्होंने सरपंच का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। तब उन्हें सबसे कम उम्र के सरपंच बनने का खिताब मिला था। बता दें कि प्रकाश सिंह बादल को 30 मार्च 2015 को पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।
मुख्यमंत्री से केंद्रीय मंत्री तक रह चुके थे बादल
प्रकाश सिंह बादल ने 1957 में सबसे पहला विधानसभा चुनाव लड़ा। 1969 में उन्होंने दोबारा जीत हासिल की। 1969-70 तक वह पंचायत राज, पशुपालन, डेयरी आदि विभागों के मंत्री रहे। इसके अलावा वह 1970-71, 1977-80, 1997-2002 में पंजाब के मुख्यमंत्री बने। इसके अलावा 1972, 1980 और 2002 में विरोधी दल के नेता भी बने। इतना ही नहीं, मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्री रहते वह सांसद भी चुने गए।
पूर्व मुख्यमंत्री की परछाई बनकर चलने वाले पार्टी के प्रवक्ता डा. दलजीत सिंह चीमा का कहना है कि साहिब अनुशासित जीवन पर विश्वास करते थे। वह जो समय देते थे उस समय पर वह वहां पर मौजूद रहते थे।
बादल जब मुख्यमंत्री थे और कांग्रेस विपक्ष में तो कांग्रेस के नेताओं की हमेशा ही कोशिश रहती थी कि वह किसी प्रकार से बादल के सदन में बोलने से रोके, क्योंकि बादल ऐसे नेता थे जो अपनी ताकत और विपक्ष की दुखती रग को भी जानते थे।
यही कारण होता था कि कांग्रेस अक्सर ही अपनी बात को सदन में रखती थी, लेकिन वह बादल का सामना नहीं करना चाहते थे।बादल वह शख्स थे जो विपक्ष के बगैर सदन में बोलते ही नहीं थे। एक बार कांग्रेस ने बजट सत्र के दौरान बायकाट किया तो बादल ने अपने भाषण को इसलिए सीमित कर लिया, क्योंकि सामने में विपक्ष ही नहीं था।
उन्होंने सदन में कहा था अगर सामने सुनने वाला न हो तो बोलने का मजा नहीं आता। जाखड़ कहते हैं, जब मैं विपक्ष का नेता था तो बादल साहिब कहते थे, चौधरी साहिब (जाखड़) जितना बोलना चाहते हैं बोलने दिया जाए। यही नहीं उन्हें जिस बात का जवाब देना होता था या जो सवाल उठते थे वह उसे खुद ही नोट करते और जवाब की पूरी तैयारी करके आते थे। मैंने आज तक किसी को इतनी तैयारी करके आते नहीं देखा। डा. चीमा कहते हैं, संगत ही प्रकाश सिंह साहिब की कमजोरी थी। संगत को देखकर उनकी आंखों में चमक आ जाती थी।
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