Delhi: पराली प्रबंधन में किसानों की रूचि कम, CPCB ने दाेगुनी की अनुदान राशि

पराली प्रबंधन

पराली प्रबंधन के लिए किसानों और उद्यमियों में उदासीनता देखते हुए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने इसके लिए दी जाने वाली अनुदान राशि दोगुना करने का निर्णय लिया है। इस निमित्त लिखित आदेश भी जारी कर दिए गए हैं। सीपीसीबी की वायु गुणवत्ता प्रबंधन शाखा के प्रमुख पीके गुप्ता द्वारा आदेश के अनुसार मार्च 2023 में इन संयंत्रों की स्थापना के दिशा- निर्देश जारी किए गए थे।

HIGHLIGHTS

  1. पराली प्रबंधन में किसानों की नहीं दिखी रूचि
  2. CPCB ने दाेगुनी की अनुदान राशि
  3. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने राज्यों को जारी किया निर्देश

संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। पराली प्रबंधन के लिए किसानों और उद्यमियों में उदासीनता देखते हुए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने इसके लिए दी जाने वाली अनुदान राशि दोगुना करने का निर्णय लिया है। इस निमित्त लिखित आदेश भी जारी कर दिए गए हैं।

गौरतलब है कि ताप विद्युत संयंत्रों और उद्योगों में धान के भूसे की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए ‘टारफेक्शन’ (फसल अवशेष को ‘जैव-कोयला’ में परिवर्तित करना) और ‘पेलेटाइजेशन’ संयंत्र स्थापित करने के लिए उद्यमियों और कंपनियों को एकमुश्त वित्तीय सहायता दी जाती है। सीपीसीबी के मुताबिक इन संयंत्रों की स्थापना से पराली जलाने की समस्या का निदान करने में सहायता मिलती है तो किसानों की आय भी बढ़ती है।

सीपीसीबी की वायु गुणवत्ता प्रबंधन शाखा के प्रमुख पीके गुप्ता द्वारा आदेश के अनुसार, मार्च 2023 में इन संयंत्रों की स्थापना के दिशा- निर्देश जारी किए गए थे। इसके तहत एकमुश्त अधिकतम वित्तीय सहायता राशि 14 से 28 लाख और 70 लाख से 1.4 करोड़ रुपये की गई थी। लेकिन किसानों और उद्यमियों की ओर से कुछ खास उत्साह दिखाई नहीं दिया।

गुप्ता के मुताबिक संयंत्र लगाने के लिए प्राप्त आवेदनों की सीमित संख्या को ध्यान में रखते हुए ही इस सहायता राशि को दोगुना कर दिया गया है। अब यह राशि 28 से 56 लाख रुपये प्रति टन उत्पादन क्षमता के संयंत्र के लिए मानी जाने वाली पूंजीगत लागत का 40 फीसदी जो भी कम हो, और अधिकतम कुल वित्तीय सहायता भी 1.4 करोड़ रुपये प्रति प्रस्ताव से बढ़ाकर प्रति प्रस्ताव 2.8 करोड़ रुपये कर दी गई है।

टारफेक्शन और पेलेटाइजेशन प्लांट

टारफेक्शन और पेलेटाइजेशन प्लांट में फसल के अवशेषों को जैव-कोयले में परिवर्तित किया जाता है। सीपीसीबी का कहना है कि ताप बिजली संयंत्रों में बायोमास की काफी मांग है लेकिन इसकी आपूर्ति पूरी नहीं हो रही है। ऐसे में प्रदूषण कम करने, थर्मल पावर प्लांटों और उद्योगों के कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिए सरकार ने पहले ही कोयले के साथ 5 से 10 प्रतिशत बायोमास जलाना अनिवार्य कर रखा है। इसी कड़ी में टारफेक्शन और पेलेटाइजेशन प्लांट स्थापित करने के लिए एकमुश्त वित्तीय सहायता देभी दी जा रही है।

बड़ी समस्या है पराली जलाना

अक्टूबर और नवंबर में पंजाब और हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रेदश में धान की पराली जलाने से राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और इससे सटे इलाकों में प्रदूषण खतरनाक स्तर तक पहुंच जाता है। आमतौर पर किसान गेहूं और आलू की खेती के लिए जमीन तैयार करने के लिए पराली को आग लगा देते हैं। पंजाब और हरियाणा में सालाना लगभग दो करोड़ टन से ज्यादा धान की पराली का उत्पादन होता है। इसमें से लगभग 64 लाख टन का प्रबंधन नहीं हो पाता है और इसमें आग लगा दी जाती है।

With Thanks Reference to: https://www.jagran.com/delhi/new-delhi-city-ncr-delhi-farmers-less-interested-in-stubble-management-cpcb-doubled-grant-amount-23594586.html

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