6 साल की उम्र में मेहतर को छुआ तो दादी ने दिया दंड, फिर बने भारत के टॉयलेट मैन, पढ़ें बिंदेश्वर पाठक का संघर्ष
Padma Vibhushan Bindeshwar Pathak: बिंदेश्वर पाठक का जन्म 2 अप्रैल 1943 को रूढ़िवादी ब्राह्मण परिवार में हुआ था. जिस वक्त बिंदेश्वर पाठक का जन्म हुआ था उस वक्त समाज में छुआछूत की परंपरा थी और हाथों से मैला ढोने की परंपरा थी.
दीपरंजन सिंह, पटना. भारत सरकार ने 75वें गणतंत्र दिवस से पूर्व संध्या पर पद्म पुरस्कारों की घोषणा की है. भारत सरकार ने 5 पद्म विभूषण, 17 पद्म भूषण और 110 पद्म श्री सम्मान की घोषणा की है. जिन पांच लोगों को पद्म विभूषण दिया गया है, उनमें से एक नाम बिहार के दिवंगत डॉ. बिंदेश्वर पाठक का भी है, जो मूलतः बिहार के वैशाली जिले के रहने वाले थे. बिंदेश्वर पाठक को सुलभ शौचालय की शुरुआत करने के लिए जाना जाता है. इन्होंने अपना पूरा जीवन उन लोगों की बेहतरी के लिए समर्पित कर दिया जिन्हें इस समाज में कभी अछूत समझा जाता था. उन्होंने सुलभ इंटरनेशनल नामक संस्था की स्थापना की और इसके बाद इन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. इनके प्रयास के कारण सुलभ शौचालय की कल्पना को साकार किया गया. इन्हें भारत का टॉयलेट मैन भी कहा जाता है.
हाथों से मैला ढोने की परंपरा को मिटाने की खाई थी कसम
बिंदेश्वर पाठक का जन्म 2 अप्रैल 1943 को रूढ़िवादी ब्राह्मण परिवार में हुआ था. जिस वक्त बिंदेश्वर पाठक का जन्म हुआ था उस वक्त समाज में छुआछूत की परंपरा थी और हाथों से मैला ढोने की परंपरा थी. एक खास समाज के द्वारा यह काम किया जाता था और उस समाज को लोग नीच दृष्टिकोण से देखते थे. इसी समाज की हालत देखकर बिदेश्वरी पाठक ने यह संकल्प लिया कि वो इस परिपाटी को समाप्त करेंगे और फिर इसके पीछे काम करने के लिए जुट गए. इस काम में उन्हें काफी मुश्किलें आई लेकिन उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
बचपन में मेहतर को छूने पर दादी से पड़ी थी डांट
बिंदेश्वरी पाठक को मेहतर समाज के लिए काम करने का विचार उस समय आया जब वह महज छह साल के थे. अपने कई इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि जब वह मात्र छह साल के थे तब उन्होंने एक महिला मेहतर को छू दिया था, तब उनकी दादी ने उन्हें दंडित किया था. इतना ही नहीं जिस घर में उनका जन्म हुआ था उस घर में उस दौरान शौचालय नहीं था और घर की महिलाओं को बाहर जाना पड़ता था. इन सब बातों से बिंदेश्वर पाठक बड़े प्रभावित हुए थे और उन्होंने निश्चय किया था कि वह स्वच्छता के क्षेत्र में कुछ अलग करेंगे. हालांकि उनके जीवन की दो बड़ी घटनाओं ने उनपर काफी प्रभाव डाला था.
पहली घटना में एक मल साफ करने वाले लड़के को पर एक सांड ने हमला किया था, लेकिन छुआछूत के कारण कोई उसे बचाने नहीं गया और उसकी मौत हो गई थी. जबकि दूसरी घटना में एक नई नवेली दुल्हन को जब उसकी सास ने मल साफ करने के लिए जाने को कहा तो वह रोने लगी. इन दोनों घटनाओं से उन्होंने इस समाज के लिए काम करने का संकल्प लिया था.
बेचने पड़े थे पत्नी के गहने, नाराज रहते थे ससुर
बिंदेश्वर पाठक ने अपने इस अभियान की शुरुआत चंदे से की थी. उन्होंने 9 लोगों से 75 रुपए चंदा लेकर अपने अभियान को शुरू किया. उनके इस सफर में काफी मुश्किलें आई. पत्नी के गहने बेचने पड़े थे, प्लेटफार्म पर सोना पड़ता था लेकिन अपने धुन में पक्के डॉ. बिंदेश्वर पाठक ने हार नहीं मानी.
इनके इस जिद के कारण इनके ससुर इनके नाराज रहते थे और उन्होंने इनका मुंह नहीं देखने तक की कसम खा ली थी. लेकिन बाद में इन्होंने स्वच्छ भारत अभियान में अहम योगदान दिया और 15 अगस्त 2023 को इनका अस्सी वर्ष की आयु में निधन हो गया.
जब पाठक को स्वच्छता सांता क्लॉज का नाम मिला
बिंदेश्वर पाठक ने 1970 में सुलभ की स्थापना की। यह कुछ ही समय में सार्वजनिक शौचालयों और खुले में शौच के खिलाफ सक्रियता का पर्याय बन गया। कार्यकर्ता और सामाजिक कार्यकर्ता, कई लोग उन्हें ‘स्वच्छता सांता क्लॉज’ के नाम से बुलाते हैं। उनका जन्म बिहार के वैशाली जिले के रामपुर बाघेल गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके परिवार में पत्नी, दो बेटियां और एक बेटा है। कॉलेज और कुछ छोटी-मोटी नौकरियों के बाद, वे 1968 में बिहार गांधी शताब्दी समारोह समिति के भंगी-मुक्ति (मैला ढोने वालों की मुक्ति) सेल में शामिल हो गए। जहां उन्हें भारत में मैला ढोने वालों की समस्याओं से गहराई से अवगत कराया गया। जब उन्होंने अपनी पीएचडी थीसिस के हिस्से के रूप में देश भर की यात्रा की और हाथ से मैला ढोने वालों के साथ रहे तो उन्हें अपनी पहचान मिली।
सुलभ इंटरनेशनल से बिंदेश्वर पाठक दुनिया में छाए
पाठक ने तकनीकी नवाचार को मानवीय सिद्धांतों के साथ जोड़ते हुए 1970 में सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन की स्थापना की। यह संगठन शिक्षा के माध्यम से मानव अधिकारों, पर्यावरण स्वच्छता, ऊर्जा के गैर-पारंपरिक स्रोतों, अपशिष्ट प्रबंधन और सामाजिक सुधारों को बढ़ावा देने के लिए काम करता है। पाठक द्वारा तीन दशक पहले सुलभ शौचालयों को किण्वन संयंत्रों से जोड़कर बायोगैस बनाने का डिजाइन अब दुनिया भर के विकासशील देशों में स्वच्छता का पर्याय बन गया है। पाठक की परियोजना की एक विशिष्ट विशेषता इस तथ्य में निहित है कि गंध-मुक्त बायो-गैस का उत्पादन करने के अलावा, यह फॉस्फोरस और अन्य अवयवों से भरपूर स्वच्छ पानी भी छोड़ता है जो जैविक खाद के महत्त्वपूर्ण घटक हैं। उनका स्वच्छता आंदोलन स्वच्छता सुनिश्चित करता है और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को रोकता है। ग्रामीण समुदायों तक इन सुविधाओं को पहुंचाने के लिए इस तकनीक को अब दक्षिण अफ्रीका तक बढ़ाया जा रहा है।
इन पुरस्कारों और सम्मान से नवाजे गए
पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित, पाठक को एनर्जी ग्लोब अवार्ड, बेस्ट प्रैक्टिस के लिए दुबई इंटरनेशनल अवार्ड, स्टॉकहोम वाटर प्राइज, पेरिस में फ्रांसीसी सीनेट से लीजेंड ऑफ प्लैनेट अवार्ड सहित अन्य पुरस्कार भी मिल चुके हैं। पोप जॉन पॉल द्वितीय ने 1992 में पर्यावरण के लिए अंतर्राष्ट्रीय सेंट फ्रांसिस पुरस्कार से डॉ. पाठक को सम्मानित करते हुए सराहना की कि आप गरीबों की मदद कर रहे हैं। 2014 में, उन्हें सामाजिक विकास के क्षेत्र में उत्कृष्टता के लिए सरदार पटेल अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। अप्रैल 2016 में, न्यूयॉर्क शहर के मेयर बिल डी ब्लासियो ने 14 अप्रैल 2016 को बिंदेश्वर पाठक दिवस के रूप में घोषित किया। 12 जुलाई, 2017 को, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के जीवन पर पाठक की पुस्तक ‘द मेकिंग ऑफ ए लीजेंड’ नई दिल्ली में लॉन्च की गई थी। वर्ष 1974 स्वच्छता के इतिहास में एक मील का पत्थर है जब स्नान, कपड़े धोने और मूत्रालय सुविधाओं (जिसे सुलभ शौचालय परिसर के रूप में जाना जाता है) के साथ परिचर सेवा के साथ सामुदायिक शौचालयों के संचालन और रखरखाव की प्रणाली शुरू की गई। राउंड-द-क्लॉक की शुरुआत पटना में भुगतान और उपयोग के आधार पर की गई थी।
सुलभ के 16 सौ शहरों में हजारों की संख्या में सामुदायिक सार्वजनिक परिसर
अब सुलभ देश भर के रेलवे स्टेशनों और मंदिर-कस्बों में शौचालयों का संचालन और रखरखाव कर रहा है। भारत में इसके 1,600 शहरों में नौ हजार से अधिक सामुदायिक सार्वजनिक परिसर मौजूद हैं। इन परिसरों में बिजली और 24 घंटे पानी की आपूर्ति है। परिसरों में पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग बाड़े हैं। उपयोगकर्ताओं से शौचालय और स्नान सुविधाओं का उपयोग करने के लिए नाममात्र राशि ली जाती है।
कुछ सुलभ परिसरों में शॉवर सुविधा, क्लोक-रूम, टेलीफोन और प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल के साथ स्नानघर भी प्रदान किए जाते हैं। इन परिसरों का उनकी स्वच्छता और अच्छे प्रबंधन के कारण लोगों और अधिकारियों दोनों द्वारा व्यापक रूप से स्वागत किया गया है। भुगतान और उपयोग प्रणाली सार्वजनिक खजाने या स्थानीय निकायों पर कोई बोझ डाले बिना आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करती है। परिसरों ने रहने के माहौल में भी काफी सुधार किया है। वित्त वर्ष 2020 में सुलभ ने 490 करोड़ रुपये का कारोबार किया।
सुलभ ने गरीब लोगों की मदद के लिए स्थापित किए प्रशिक्षण संस्थान
सिर्फ शौचालय ही नहीं, सुलभ ने कई व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थान भी स्थापित किए हैं। यहां मुक्त सफाईकर्मियों, उनके बेटे-बेटियों और समाज के अन्य कमजोर वर्गों के व्यक्तियों को कंप्यूटर प्रौद्योगिकी, टाइपिंग और शॉर्टहैंड, विद्युत व्यापार, काष्ठकला, चमड़ा शिल्प, डीजल और पेट्रोल इंजीनियरिंग, कटाई और सिलाई, बेंत के फर्नीचर बनाना, चिनाई का काम, मोटर चलाना जैसे विभिन्न व्यवसायों में प्रशिक्षण दिया जाता है। उन्हें व्यावसायिक प्रशिक्षण देने का उद्देश्य उन्हें आजीविका के नए साधन देना, गरीबी दूर करना और समाज की मुख्यधारा में लाना है।
हाथ से मैला ढोने वालों के बच्चों के लिए दिल्ली में एक अंग्रेजी माध्यम स्कूल स्थापित करने से लेकर वृन्दावन में परित्यक्त विधवाओं को वित्तीय सहायता प्रदान करने या राष्ट्रीय राजधानी में शौचालयों का एक संग्रहालय स्थापित करने तक, पाठक और उनके सुलभ ने हमेशा हाशिए पर रहने वाले लोगों के उत्थान की दिशा में काम किया है।
जानिए क्यों बना शौचालयों का संग्रहालय
बिंदेश्वर पाठक ने एक बार कहा था कि मैडम तुसाद का दौरा करने के बाद उन्होंने शौचालयों का एक संग्रहालय स्थापित करने के बारे में सोचा था। इस संग्रहालय को अक्सर दुनिया भर के सबसे अजीब संग्रहालयों में से एक में सूचीबद्ध किया जाता है। लेकिन यह 1970 के दशक में शुरू हुई उनकी यात्रा का वर्णन करता है। जब उन्होंने स्वच्छता पर महात्मा गांधी के मार्ग पर चलने और समाज के सबसे निचले तबके के लोगों के उत्थान का फैसला किया था।
With Thanks Reference to: https://hindi.news18.com/news/bihar/padma-vibhushan-bindeshwar-pathak-toilet-man-of-india-and-sulabh-international-founder-story-8018335.html and https://www.amarujala.com/bihar/bindeshwar-pathak-died-in-delhi-aiims-was-admitted-due-to-sudden-health-deterioration-2023-08-15