ED के मिले गिरफ्तारी और संपत्ति कुर्की के अधिकार पर फिर उठे सवाल, PMLA कानून की समीक्षा करेगा सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट इस बात पर गौर करेगा कि पीएमएलए (PMLA)कानून के तहत गिरफ्तारी और मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल संपत्ति को कुर्क करने से जुड़ी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की शक्तियों को बरकरार रखने वाले फैसले पर पुनर्विचार की जरूरत है या नहीं.
नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि वह इस पर गौर करेगा कि धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत गिरफ्तारी और मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल संपत्ति को कुर्क करने के संबंध में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की शक्तियों को बरकरार रखने वाले 2022 के उसके फैसले पर पुनर्विचार की आवश्यकता है या नहीं.
जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की एक विशेष पीठ ने कहा कि वह इसी मुद्दे तक सीमित रहेगी, क्योंकि तीन न्यायाधीशों की पीठ पहले ही पीएमएलए(PMLA) से संबंधित कुछ मुद्दों पर गौर कर चुकी है. पीठ ने कहा, ‘अब मुद्दा यह है कि क्या किसी भी चीज पर पुनर्विचार किये जाने की आवश्यकता है.’
बेंच ने केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा उठाई गई आपत्ति पर गौर किया कि ‘बिना ठोस वजहों और सिर्फ इसलिए इस मुद्दे पर पुनर्विचार नहीं होना चाहिए कि किसी ने अदालत का रुख किया है और चाहता है कि तीन न्यायाधीशों की पीठ के फैसले पर पुनर्विचार हो. यह दोबारा गौर करने का अवसर नहीं होना चाहिए.’
सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखे थे ईडी के अधिकार
शीर्ष अदालत कुछ मापदंडों पर तीन न्यायाधीशों की पीठ द्वारा 27 जुलाई, 2022 के फैसले पर पुनर्विचार के अनुरोध वाली कुछ याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. पिछले साल के अपने फैसले में शीर्ष अदालत ने पीएमएलए(PMLA) के तहत गिरफ्तारी, धन शोधन में शामिल संपत्ति की कुर्की, तलाशी और जब्ती की ईडी की शक्तियों को बरकरार रखा था.
मेहता ने बुधवार को सुनवाई के दौरान 2022 के फैसले पर पुनर्विचार को लेकर आपत्ति जताई. उन्होंने इसे ‘कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग’ बताया. इस पर पीठ ने उनसे कहा कि पक्षों को सुनने के बाद अगर उसे लगता है कि किसी पहलू पर पुनर्विचार की जरूरत नहीं है तो वह फैसले पर दोबारा गौर नहीं कर सकती. पीठ ने बताया कि कैसे मामलों को पुनर्विचार के लिए बड़ी पीठों के पास भेजा जाता है. पीठ ने कहा, ‘अगर तीन न्यायाधीशों को लगता है कि किसी पहलू पर पुनर्विचार की आवश्यकता है, तो हम इसे संदर्भित कर सकते हैं.’
तुषार मेहता ने पूछा, ‘क्या कोई कल याचिका दायर कर सकता है और कह सकता है कि मैं समलैंगिक विवाह के फैसले से सहमत नहीं हूं? क्या इसे बड़ी पीठ के पास भेजा जा सकता है?’ उन्होंने कहा कि पीएमएलए एक अलग कानून नहीं है, बल्कि वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एफएटीएफ) की सिफारिशों के अनुरूप तैयार किया गया अधिनियम है. एफएटीएफ वैश्विक धन शोधन और आतंकवादी वित्तपोषण की निगरानी संस्था है.
एसजी मेहता ने कहा कि एफएटीएफ आपसी मूल्यांकन करता है और विभिन्न देशों के सात सदस्य आते हैं और देखते हैं कि धन शोधन रोधी कानून वैश्विक मानकों के अनुरूप है या नहीं. उन्होंने कहा कि मूल्यांकन के बाद किसी देश को ग्रेड दिया जाता है.
बता दें कि पिछले साल अगस्त में शीर्ष अदालत जुलाई 2022 के अपने फैसले की समीक्षा की मांग वाली एक याचिका पर सुनवाई करने के लिए सहमत हुई थी और कहा था कि प्रवर्तन मामले की सूचना रिपोर्ट (ईसीआईआर) प्रदान नहीं करना और बेगुनाही की धारणा को उलटना-‘प्रथमदृष्टया’ इन दोनों पहलुओं पर पुनर्विचार की आवश्यकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने 2022 के अपने फैसले में कहा था कि ईडी द्वारा दायर ईसीआईआर को प्राथमिकी के साथ नहीं जोड़ा जा सकता है और हर मामले में संबंधित व्यक्ति को इसकी एक प्रति प्रदान करना अनिवार्य नहीं है. निर्दोष होने का अनुमान भारतीय आपराधिक कानून का एक पारंपरिक सिद्धांत है जहां किसी आरोपी को दोषी साबित होने तक निर्दोष माना जाता है. दूसरी ओर, बेगुनाही की धारणा को उलटने से आरोपी पर अपनी बेगुनाही साबित करना अनिवार्य हो जाता है. इस मामले में अगली सुनवाई अब 22 नवंबर को होगी.
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