शेख हसीना दो बार मौत को दे चुकी हैं मात, भारत में किसको कहती थीं ‘काका बाबू’
शेख हसीना बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान की सबसे बड़ी बेटी हैं. उनका शुरुआती जीवन पूर्वी बंगाल के तुंगीपाड़ा में बीता है.
Sheikh Hasina Biography: बांग्लादेश के आम चुनाव में शेख हसीना (Sheikh Hasina) की पार्टी आवामी लीग (AL) ने बहुमत हासिल किया है. 299 संसदीय सीटों में से 165 सीटें हासिल करने के बाद शेख हसीना (Sheikh Hasina) चौथी बार प्रधानमंत्री बनने को तैयार हैं. हसीना का जीतना भारत के नजरिये से बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि उनके सत्ता में रहते न सिर्फ भारत-बांग्लादेश के रिश्ते सुधरे हैं. बल्कि आर्थिक, कूटनीतिक और सामरिक रिश्ते नई ऊंचाई पर हैं.
कौन हैं शेख हसीना?
28 सितंबर 1947 को जन्मीं शेख हसीना बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान की सबसे बड़ी बेटी हैं. उनका शुरुआती जीवन पूर्वी बंगाल के तुंगीपाड़ा में बीता है. कुछ वक्त सेगुनबागीचा (Segunbagicha) में भी रहीं. इसके बाद उनका परिवार ढाका शिफ्ट हो गया.
कैसे आईं राजनीति में?
शेख हसीना पहली बार छात्र राजनीति के जरिए सियासत में उतरीं. साल 1966 में जब वह ईडन महिला कॉलेज में पढ़ रही थीं, तब स्टूडेंट यूनियन का चुनाव लड़ा और वाइस प्रेसिडेंट बनीं. इसके बाद वह अपने पिता की पार्टी आवामी लीग के स्टूडेंट विंग का कामकाज संभालने लगीं. यूनिवर्सिटी ऑफ ढाका में भी छात्र राजनीति में सक्रिय रहीं.
मां, बाप और 3 भाईयों की हत्या
शेख हसीना की जिंदगी में सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था, लेकिन साल 1975 किसी बुरे सपने की तरह आया. बांग्लादेश की सेना ने बगावत कर दी. हसीना के परिवार के खिलाफ विद्रोह छेड़ दिया. हथियारबंद लड़ाकों ने शेख हसीना की मां, उनके तीन भाई और पिता शेख मुजीबुर रहमान (Sheikh Mujibur Rahman) की हत्या कर दी. उस वक्त हसीना अपने पति वाजिद मियां और छोटी बहन के साथ यूरोप में थीं. उनकी जान बच गई.

भारत ने दी शरण, 6 साल दिल्ली में रहीं
मां, बाप और 3 भाईयों की हत्या के बाद शेख हसीना कुछ वक्त तक जर्मनी में रहीं. उस समय भारत में इंदिरा गांधी सत्ता में थीं. इंदिरा सरकार ने, फौरन शेख हसीना को राजनीतिक शरण ऑफर की. हसीना अपनी बहन के साथ दिल्ली आ गईं और यहां करीब 6 साल रहीं.
बांग्लादेश की राजनीति में कदम
साल 1981 में जब शेख हसीना बांग्लादेश लौटीं तो उन्हें रिसीव करने लाखों की तादाद में लोग इकट्ठा हुए. एयरपोर्ट के बाहर मेला जैसा लग गया था. बांग्लादेश लौटने के बाद हसीना ने अपने पिता की पार्टी को आगे बढ़ाने का फैसला किया. साल 1986 में पहली बार आम चुनाव में उतरीं. उस वक्त देश में मार्शल लॉ लगा हुआ था. इस चुनाव में हसीना, विपक्ष की नेता चुनी गईं.
पहली बार कैसे मिली सत्ता?
साल 1991 में बांग्लादेश में पहली बार स्वतंत्र तौर पर आम चुनाव हुए. हालांकि इस चुनाव में शेख हसीना की पार्टी को बहुमत नहीं मिला. विपक्षी, खालिदा जिया की पार्टी बीएनपी सत्ता में आई. हसीना ने चुनाव में धांधली का आरोप लगाया. तमाम और पार्टियों ने उनका साथ दिया. 1996 में फिर चुनाव हुए और इस बार शेख हसीना की पार्टी भारी भरकम बहुमत से सत्ता में आई. हसीना पहली बार प्रधानमंत्री बनीं. हालांकि 2001 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा.
2009 में हसीना को फिर सत्ता मिली तब से लगातार पीएम की गद्दी पर हैं. इस बार भी शेख हसीना ने अपनी पारंपरिक गोपालगंज-3 संसदीय सीट से चुनाव लड़ा और भारी जीत हासिल की. हसीना, साल 1986 से अब तक इस से आठ चुनाव जीत चुकी हैं.
दूसरी बार कैसे बची जान?
साल 2004 में शेख हसीना पर जानलेवा हमला हुआ. इस ग्रेनेड अटैक में वह बुरी तरह घायल हो गई थीं. हमले में 24 लोग मारे गए थे और कम से कम 500 लोग घायल हो गए थे.
भारत के किस नेता को कहती हैं ‘काका बाबू’?
शेख हसीना जब राजनीति में सक्रिय नहीं थीं, तब से उनका भारत के साथ गहरा नाता है. कई भारतीय नेताओं से व्यक्तिगत संबंध रहे हैं, जिसमें अटल बिहारी वाजपेयी और प्रणब मुखर्जी भी शामिल हैं. शेख हसीना प्रणब मुखर्जी को ‘काका बाबू’ कहकर बुलाया करती थीं. प्रणब दा जब राष्ट्रपति थे तब शेख हसीना उनके लिए बांग्लादेश की खास ‘हिलसा’ मछली तोहफे के तौर पर भिजवाया करती थीं.
मुखर्जी ने अपनी आत्मकथा ‘कोलिशन इयर्स’ में लिखा है कि साल 2008 में जब बांग्लादेश में चुनाव हुए तो उस चुनाव में शेख हसीना को लड़ाने में भारत की सक्रिय भूमिका थी. मुखर्जी ने लिखा है कि उनकी शेख हसीना से इतनी नजदीकी थी कि उन्होंने बांग्लादेश के जनरल मोईन यू अहमद को आश्वासन दे दिया था कि हसीना उन्हें नौकरी से नहीं हटाएंगी.
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