ब्रिक्स सम्मेलनः पुतिन से पीएम मोदी की हुई मुलाक़ात, शी जिनपिंग से आज होगी वार्ता
भारत लौटने पर पीएम मोदी ने ब्रिक्स के दौरे को बेहद सफल बताते हुए रूस के राष्ट्रपति पुतिन, उनकी सरकार और रूस के लोगों का आभार जताया. उन्होंने कहा कि ब्रिक्स समिट सभी सदस्य देशों के लिए सकारात्मकता लेकर आया है, जो जंग के इस माहौल में बहुत जरूरी है.
भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने मंगलवार को इसकी पुष्टि की. दोनों नेताओं के बीच क़रीब पांच साल बाद द्विपक्षीय वार्ता होगी.
सोमवार को ही विदेश सचिव ने एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में घोषणा की थी कि 2020 में उठे मुद्दों के हल के लिए और तनाव कम करने के लिए दोनों देशों में समझौता हो गया है.
मिस्री की घोषणा का संकेत था कि दोनों एशियाई शक्तियों के बीच अब उच्च स्तरीय कूटनीति का नया दौर शुरू होने वाला है.
सीमा पर गश्त को लेकर भारत और चीन के बीच हुए समझौते पर मिस्री ने कहा, “जिन इलाकों को लेकर बातचीत चल रही है वहां गश्त और पशु चराने की गतिविधियां 2020 की स्थिति में लौट आएंगी. जहां तक डिसएंगेजमेंट को लेकर पहले हुए समझौते की बात है, इन वार्ताओं में उनपर बात नहीं हुई थी. सोमवार को जो समझौता हुआ, वो उन मुद्दों को लेकर है जो पिछले कुछ सालों से लंबित चल रहे थे.”
रूस के कज़ान में ब्रिक्स का 16वां शिखर सम्मेलन चल रहा है और इसमें हिस्सा लेने के लिए पीएम मोदी मंगलवार पहुंचे.
सम्मेलन से इतर पीएम नरेंद्र मोदी और सम्मेलन के मेज़बान रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच पहले दिन द्विपक्षीय वार्ता हुई. इसके अलावा पीएम मोदी ने ईरान के राष्ट्रपति से भी मुलाक़ात की.
रूस की अध्यक्षता में 22 से 24 अक्तूबर तक चलने वाले इस सम्मेलन में आर्थिक सहयोग, जलवायु परिवर्तन और डिजिटल समावेश समेत कई मुद्दों पर चर्चा होगी और साथ ही नए सदस्यों को शामिल करने पर भी विचार किया जाएगा.
पीएम नरेंद्र मोदी ब्रिक्स सदस्य देशों के प्रमुखों के साथ द्विपक्षीय बैठकें भी करेंगे.
पुतिन के साथ वार्ता में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर रूस-यूक्रेन युद्ध की चर्चा की और कहा कि शांति के लिए जो भी भूमिका होगी, भारत उसे करने के लिए तैयार है.
पीएम मोदी ने कहा, “रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष के विषय पर हम लगातार संपर्क में रहे हैं. हमारा मानना है कि समस्याओं का समाधान शांतिपूर्ण तरीके से होना चाहिए.”
“शांति और स्थिरता की जल्द से जल्द से बहाली का हम पूरी तरह से समर्थन करते हैं. आने वाले समय में भी भारत हर संभव सहयोग देने के लिए तैयार है.”
वहीं रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने दोनों देशों के बीच चल रही परियोजनाओं की चर्चा की और भारत के कज़ान में वाणिज्य दूतावास खोलने का स्वागत किया है.
राष्ट्रपति पुतिन ने कहा, “हमारी बड़ी परियोजनाएं लगातार विकसित हो रही हैं. जो आपने कज़ान में भारत का वाणिज्य दूतावास खोलने का फ़ैसला किया है हम इसका स्वागत करते हैं. भारत के कूटनीतिक उपस्थिति से हमारे सहयोग को फ़ायदा मिलेगा.”
उन्होंने कहा, “ब्रिक्स के अंदर भारत-रूस के सहयोग को हम भारी अहमियत देते हैं क्योंकि हम दोनों देश इसके संस्थापक सदस्य हैं. हमारे बीच जनप्रतिनिधियों, हमारे विदेश मंत्रियों ने लगातार संपर्क बनाए रखा है और व्यापार में भी सकारात्मक वृद्धि हो रही है.”
पुतिन ने ज़ोर देकर कहा कि भारत और रूस के बीच रिश्ते तेज़ी से विकसित हुए हैं और नई दिल्ली के साथ अपने रिश्ते को मॉस्को अहमियत देता है.
भारत के विदेश मंत्रालय के अनुसार, बीते एक दशक में पीएम मोदी का यह सातवां और इस साल दूसरा रूसी दौरा है.
यह शिखर सम्मेलन यूक्रेन संघर्ष और पश्चिम एशिया में बढ़ते तनाव के बीच हो रहा है और इस सम्मेलन को ग़ैर पश्चिमी शक्तियों की ओर से शक्ति प्रदर्शन के रूप में देखा जा रहा है.
भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने मंगलवार शाम को प्रेस ब्रीफ़िंग में बताया कि पीएम मोदी और पुतिन के बीच रक्षा, ईंधन और परमाणु कार्यक्रम में सहयोग को लेकर बात हुई है.
विक्रम मिस्री के अनुसार, कुडनुकुलम न्यूक्लियर पावर प्रोजेक्ट में बची हुई 3 से 6 यूनिटों के निर्माण पर भी बात हुई है. साथ ही दोनों देशों के बीच वित्तीय क्षेत्र में व्यापक साझेदारी पर भी चर्चा हुई.
उन्होंने कहा कि भारत और रूस के बीच भारत-रूस की सरकारों के बीच सहयोग लिए बने आयोग की 25वीं बैठक अगले महीने 12 नवंबर को दिल्ली में होगी. रूस के प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई रूसी उप प्रधानमंत्री डेनिस मंचुरोव करेंगे.
विदेश सचिव के अनुसार, ईरान के नए निर्वाचित राष्ट्रपति मसूद पेजेश्कियान के साथ पीएम मोदी की मुलाक़ात हुई. दोनों नेताओं के बीच चाबहार पोर्ट और इंटरनेशनल नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (आईएनएसटीसी) को लेकर बात हुई जोकि क्षेत्रीय संपर्क और व्यापारिक साझेदारी के लिहाज से बहुत अहम है.
इसके अलावा पश्चिम एशिया में बिगड़ते हालात को लेकर भी चर्चा हुई और पीएम मोदी ने इसे लेकर चिंता व्यक्त की.
इस शिखर सम्मेलन के दौरान नए सदस्यों को शामिल करने पर भी चर्चा होने वाली है.
एक पत्रकार के सवाल के जवाब में विदेश सचिव ने कहा कि ये पूरी तरह से ग़लत सूचना है कि भारत ने ब्रिक्स के विस्तार का विरोध किया है.
उन्होंने कहा कि पिछले साल ब्रिक्स में शामिल हुए नए देशों ने इस प्रक्रिया में भारत की भूमिका की तारीफ़ की थी.

साल 2006 में ब्राज़ील (B), रूस (R), भारत (I), चीन (C) को मिलाकर BRIC (ब्रिक) समूह बना था. साल 2010 में इसमें दक्षिण अफ्रीका (S) शामिल हुआ. इन्हीं देशों के नाम के पहले अक्षर से मिलकर BRICS (ब्रिक्स) बना.
इस समूह का गठन दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण विकासशील देशों को एकसाथ लाने के लिए हुआ था, ताकि उत्तरी अमेरिका और पश्चिमी यूरोप के रईस मुल्कों की राजनीतिक और आर्थिक ताक़त को चुनौती दी जा सके. अब इसका दायरा बढ़ गया है.
1 जनवरी 2024 से इस समूह में मिस्र, इथोयोपिया, ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात को इसमें जगह देने के लिए निमंत्रण भेजा गया और बाद में इन्हें समूह में शामिल किया गया.
सऊदी अरब सरकार के एक मंत्री के मुताबिक़ मध्य जनवरी तक वो इसमें शामिल नहीं हुआ था लेकिन दक्षिण अफ़्रीका की सरकार ने उसकी सदस्यता की पुष्टि की थी.
अर्जेंटीना को भी इस ग्रुप में शामिल होने का न्योता दिया गया था लेकिन दिसंबर 2023 में ख़ावियर मिले के राष्ट्रपति बनने के बाद अर्जेंटीना इससे पीछे हट गया.
ब्रिक्स में तीन दर्जन अन्य देशों ने शामिल होने की इच्छा ज़ाहिर की है, इनमें से कई देशों ने अपने उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल भेजे हैं.

जब भी ब्रिक्स शिखर सम्मेलन होता है तो उसमें प्राथमिकताएं तय की जाती हैं और फ़ैसले किए जाते हैं. अलग-अलग सदस्य देश एक साल के लिए इसके अध्यक्ष बनते हैं.
अब इस संगठन के कुछ चुनिंदा सदस्य नहीं रह गए हैं तो अब इसका क्या नाम होगा ये अभी साफ़ नहीं है लेकिन अभी इसे ब्रिक्स प्लस कहा जा रहा है.
इस समूह के देशों की बात करें तो इनकी संयुक्त आबादी 3.5 अरब है, जो दुनिया की कुल जनसंख्या का 45 फीसदी है.
इन सदस्य देशों की संयुक्त अर्थव्यवस्थाएं 28.5 लाख करोड़ डॉलर का दमखम रखती हैं, जो दुनिया की अर्थव्यवस्था का क़रीब 28 फीसदी हिस्सा है.
अगर ईरान, सऊदी अरब और यूएई की बात करें तो ब्रिक्स के ये सदस्य दुनिया के कुल कच्चे तेल के 44 फ़ीसदी का ख़ुद उत्पादन करते हैं.
इस संगठन का ये भी तर्क है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों पर पश्चिमी देशों का दबदबा है और ये संस्थाएं दुनियाभर की सरकारों को पैसा देती हैं.
ब्रिक्स उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए एक बड़ी आवाज़ और उनका प्रतिनिधि बनना चाहता है.
इसी कड़ी में साल 2014 में ब्रिक्स राष्ट्रों ने न्यू डेवलपमेंट बैंक की शुरुआत की थी जो मूलभूत ढांचे के लिए कर्ज़ देता है.
साल 2022 के अंत तक इसने उभरते देशों को नई सड़कों, पुलों, रेल और पानी की आपूर्ति की परियोजनाओं के लिए तक़रीबन 32 अरब डॉलर दिए थे.
विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन का ब्रिक्स के लिए यही मुख्य लक्ष्य है.

व्यापार के लिए डॉलर बहुत अहम है और ब्रिक्स देशों में एक कॉमन करेंसी पर भी विचार की ख़बरें रही हैं.
कोई भी दो देश आपस में व्यापार के लिए डॉलर का इस्तेमाल करते हैं लेकिन ब्राज़ील और रूस के प्रमुख नेताओं का मानना है कि उन्हें ब्रिक्स की एक करेंसी बनानी चाहिए ताकि डॉलर का दबदबा कम हो.
हालांकि ब्रिक्स 2023 के सम्मेलन में इस पर कोई चर्चा नहीं हुई थी.
विश्लेषक मानते हैं कि ब्रिक्स राष्ट्रों के लिए एक कॉमन करेंसी तैयार करना अव्यावहारिक होगा क्योंकि सभी देशों की अर्थव्यवस्थाएं बहुत अलग-अलग हैं.
हालांकि विश्लेषक ये भी मानते हैं कि वो भविष्य में अंतरराष्ट्रीय व्यापार के भुगतान के लिए एक नई करेंसी या क्रिप्टोकरेंसी के इस्तेमाल पर विचार कर सकते हैं.
मंगलवार को रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने कहा कि ब्रिक्स के सदस्य देश स्थानीय मुद्रा में व्यापार करते हैं तो इससे भूराजनीति के ख़तरों से बचा जा सकता है.
बीते अगस्त में रूस के प्रधानमंत्री मिखाइल मिशुस्तिन ने कहा था कि रूस और इसके सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार चीन के बीच 95% भुगतान रूबल और यूआन में हो रहा है.
यूक्रेन जंग की वजह से पश्चिम देशों ने रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए हैं.
साल 2022 में रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद यूरोपीय संघ के साथ-साथ जी7 ने लगभग 325 अरब डॉलर मूल्य की रूस की संपत्ति फ्रीज़ कर दी थी.
ये संपत्तियां हर साल तीन अरब डॉलर का ब्याज कमा रही हैं.
जी7 की योजना के तहत तीन अरब डॉलर का इस्तेमाल यूक्रेन के लिए अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार से लिए गए 50 अरब डॉलर के क़र्ज़ के सालाना ब्याज का भुगतान करने के लिए किया जाएगा.
ऐसे में रूस भुगतान के वैकल्पिक तरीक़े तलाशने की कोशिश में है.
ब्रिक्स समिट के दूसरे दिन पीएम मोदी सहित सदस्य देशों ने कजान घोषणापत्र को मंजूरी दी. इस घोषणापत्र में ब्रिक्स ने इंटरनेशनल सिस्टम को और लचीला और जवाबदेह बनाने की बात कही है. यह भी कहा कि उभरते विकासशील देशों को इसमें जगह मिलनी चाहिए. सबसे कम विकसित देशों विशेष रूप से अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और कैरेबियाई मुल्कों को और भागीदारी मिलनी चाहिए.
घोषणापत्र में रूस और चीन पर पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों पर स्पष्ट कटाक्ष करते हुए ब्रिक्स के नेताओं ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को बंधन मुक्त कराने की बात कही है. साथ ही किसी भी देश के खिलाफ एकतरफा फैसले या ताकत के दम पर कोई कार्रवाई करने का विरोध किया गया है.
With Thanks Reference to:https://www.aajtak.in/world/story/pm-modi-russia-kazan-visit-brics-summit-2024-vladimir-putin-xi-jinping-modi-visit-takeaway-ntc-dskc-2079451-2024-10-24 and https://www.bbc.com/hindi/articles/c8j7j22dw4do