Ramanand Sagar: ‘रामायण’ के लिए जान देने को तैयार थे रामानंद, पाकिस्तान के जिक्र के बिना अधूरा है यह किस्सा

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रामानंद सागर उर्फ चंद्रमौली चोपड़ा की ‘रामायण’ आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है। जब भी रामायण का जिक्र होता है तो रामानंद सागर का नाम जरूर आता है। यूं कह लीजिए कि ‘रामानंद सागर की रामायण’ के नाम से ही लोग उन्हें याद करते हैं। 29 दिसंबर 1917 को जन्मे रामानंद सागर को टीवी शो ‘रामायण’ ने युगों-युगों तक अमर कर दिया। भारत सरकार ने रामानंद को 2000 में कला और सिनेमा में उनके योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया था। क्या आपको पता है कि रामानंद की इस जीवनी में एक किरदार पाकिस्तान का भी है। अगर नहीं तो आइए आपको बताते हैं…

यह कहानी उस समय की है, जब देश आजाद हुआ था। 1947 में जब भारत स्वतंत्रता का स्वाद चख रहा था, तब रामानंद 30 साल के थे। कई साल पहले से ही उनका परिवार कश्मीर में आकर बसा था। इसी बीच कुछ ऐसा हुआ, जिसने रामानंद की जिंदगी को पूरी तरह बदलकर रख दिया। आजादी के उन दिनों में पाकिस्तान के हमले और कबायलियों के आतंक ने रामानंद के परिवार को बुरी तरह प्रभावित किया। आतंकी हमलों के बीच तब पायलट बीजू पटनायक हवाई जहाज लेकर उन्हें बचाने पहुंचे थे।

बात 27 अक्टूबर 1947 की है। रामानंद सागर पत्नी, पांच बच्चों, सास, साले और उनकी पत्नी के साथ पूरी रात श्रीनगर के पुराने हवाई अड्डे की दीवार से चिपके थे। पाक सेना की मदद से 10 हजार जिहादी मुस्लिम कबायली बारामूला पहुंचने के बाद श्रीनगर में बिजली की लाइन काट चुके थे। राजधानी में अंधेरी छा गया था, जिसके बाद लूट, अपहरण, बलात्कार का खेल शुरू हो चुका था। बचाव के लिए बीजू पटनायक आए, लेकिन रामानंद  के सिर पर बड़ा ट्रंक देखकर कर्मीदल ने परिवार के किसी भी सदस्य को विमान में चढ़ाने से इनकार कर दिया। हताश शरणार्थी धक्का-मुक्की कर रहे थे। रामानंद सागर जोर से चिल्लाए ट्रंक मेरे साथ ही जाएगा, वरना परिवार का कोई नहीं जाएगा।

तभी उनकी मदद के लिए एक पंजाबी जाटनी आई, जिसने केवल ट्रंक ही नहीं, बल्कि सागर को भी उठाकर विमान में फेंक दिया। उसने पायलट से कहा, ‘तुझे शर्म नहीं आती। चार दिन से हमने कुछ खाया नहीं है।’  पायलट बीजू शांत तो हो गए थे, लेकिन वह ट्रंक के पास आए और उसे खोलने के लिए कहा, जब ट्रंक खोला गया तो उसमें रामानंद सागर के उपन्यास के नोट्स, विभाजन के अनुभव, बरसात फिल्म की स्क्रिप्ट मिले। इसे दिखाने के साथ ही सागर रो दिए और बोले, ‘हां यही मेरे हीरे जवाहरात हैं, जो मैं लेकर जा रहा हूं।’

इस मंजर को देख बीजू पटनायक ने अगले ही पल रामानंद को गले लगा लिया। विमान में बैठी भीड़ में भी जोश बढ़ गया था। आपको बता दें कि बीजू पटनायक दो बार उड़ीसा के मुख्यमंत्री रहे थे। वह असम के राज्यपाल भी बने और इंडियन एयरलाइंस को कमर्शल रूप से शुरू करने का श्रेय भी उन्हीं को ही जाता है।

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