Bioscope S3: कमाल अमरोही की ‘पाकीजा’ के पूरे हुए 50 साल, परदे पर मीना कुमारी बनकर नाची थीं ये हीरोइन

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फिल्म ‘पाकीज़ा’ रिलीज हुई तो लोग इसे देखने उतनी तादाद में आए नहीं जितनी उम्मीद इस फिल्म में पैसा लगाने वालों को रही। लेकिन, मौत का तमाशा देखने वाली इस दुनिया ने फिल्म की रिलीज के चंद हफ्तों बाद ही मीना कुमारी के गुजर जाने पर इसे हाउसफुल फिल्म बना दिया। फिल्म हफ्तों, महीनों तक चलती रही। कमाल अमरोही का इसने अगला पिछला सब कर्ज सूद समेत चुकता कर दिया। ये अलग बात है कि इस फिल्म को इनाम देने में उस जमाने ने कंजूसी बहुत बरती। कमाल अमरोही ने खुद बताया था कि कैसे उनसे पुरस्कार के एवज में पैसे मांगे गए। फिल्मफेयर पुरस्कारों में फिल्म ‘पाकीज़ा’ के साथ हुई नाइंसाफी दुनिया को मालूम है ही। लेकिन, शायद ये बात कम लोगों को ही मालूम होगी कि इस नाइंसाफी को देख इसके खिलाफ आवाज सिर्फ अभिनेता प्राण ने ही उठाई थी और फिल्म ‘बेईमान’ के लिए मिला अपना पुरस्कार लेने से मना कर दिया था। इसी फिल्म को उस साल फिल्म ‘पाकीज़ा’ पर तवज्जो देते हुए सर्वश्रेष्ठ संगीत का पुरस्कार मिला। फिल्म ‘बेईमान’ के संगीतकार थे शंकर जयकिशन और फिल्म ‘पाकीज़ा’ के गुलाम मोहम्मद।

शूटिंग के बाद धर्मेंद्र को निकाला

फिल्म ‘मिर्ज़ा ग़ालिब’ के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीत का राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुके बीकानेर के रहैया संगीतकार गुलाम मोहम्मद ने फिल्म ‘पाकीज़ा’ में अपने संगीत का पूरा नूर उड़ेल दिया था। बरसों बरस मेहनत करके उन्होंने फिल्म के लिए गान तैयार किए। हर गाना एक से एक बेहतरीन। ये बात तो जगजाहिर है कि फिल्म ‘पाकीज़ा’ को बनने में वक्त बहुत लगा। वजह रही फिल्म के निर्देशक कमाल अमरोही और उनकी पत्नी व फिल्म की हीरोइन मीना कुमारी के बीच चली अनबन। कुछ ने कहा दोनों में धर्मेंद्र की वजह से झगड़ा हुआ। धर्मेंद्र और मीना कुमारी के किस्से उन दिनों खूब आम थे। धर्मेंद्र को इस फिल्म में कमाल अमरोही ने उसी रोल के लिए साइन किया था, जिस रोल को बाद में राजकुमार ने किया। फिल्म के एक दो सीन में धर्मेंद्र की शूटिंग वाले सीन बाकी भी रहे, लेकिन वहीं जहां उनका चेहरा नहीं दिखना था। सिर्फ धर्मेंद्र के चलते ही फिल्म के तमाम हिस्सों की शूटिंग दोबारा करनी पड़ी हो ऐसा भी नहीं। फिल्म की तमाम रीलें पहले ब्लैक एंड व्हाइट में भी बनी, जिन्हें कमाल अमरोही ने फिर से शूट किया। फिर इसको रंगीन में वह शूट कर ही रहे थे कि सिनेमास्कोप आ गया।

गुलाम मोहम्मद की शान में
कमाल अमरोही अपने सिनेमैटोग्राफर जोसेफ विरसचिंग की मदद से एमजीएम स्टूडियो से सिनेमास्कोप का लेंस मांग लाए। जोसेफ का फिल्म की शूटिंग के दौरान निधन हो गया जिसके बाद इसे पूरा करने में हिंदी सिनेमा के तमाम दिग्गज सिनेमैटोग्राफरों ने कमाल अमरोही की मदद की। इस दौरान एक कमाल और हुआ। फिल्म की जब प्रोसेसिंग चल रही थी तो कमाल को इस बात का इल्म हुआ कि एमजीएम जैसी बड़ी कंपनी से लाया गया लेंस डिफेक्टिव था। ये रील के सेंटर में फोकस करने से चूक जा रहा था। ये बात एमजीएम को पता चली तो उसके प्रबंधन ने कमाल अमरोही से मांफी तो मांगी ही, उन्हें इस जानकारी को साझा करने का शुक्रिया अदा किया और ये लेंस भी उन्हें ही दे दिया। यही नहीं, इस लेंस की तमाम फीस भी एमजीएम ने माफ कर दी। कमाल अमरोही की बतौर निर्देशक पहली फिल्म ‘महल’ के सिनेमैटोग्राफर भी जोसेफ ही थे। यहां एक बात और। और वो ये कि कमाल अमरोही अपनी टीम से बेइंतहा प्यार करते थे। यहां तक कि फिल्म ‘पाकीज़ा’ जब अपने मुहूर्त के 16 साल बाद रिलीज के लिए तैयार हुई और फिल्म वितरकों ने कमाल अमरोही पर नए जमाने के चलन के गाने लेने का उन पर बहुत दबाव बनाया तो कमाल अमरोही ने इतना ही कहा कि गुलाम जिंदा होते तो शायद मैं सोचता भी, लेकिन वह साथ नहीं तो उनका एक गाना भी न बदला जाएगा। गुलाम मोहम्मद ने फिल्म ‘पाकीज़ा’ के लिए कुल 12 गाने बनाए थे, इस्तेमाल कमाल ने फिल्म में छह ही किए। फिल्म की रिलीज से पहले वह भी चल बसे।

भंसाली की प्रेरणास्रोत फिल्म
फिल्म ‘पाकीज़ा’ के किस्से इतने हैं कि इन पर किताबें लिखी जा चुकी हैं। संजय लीला भंसाली जैसे निर्देशक बार बार इसे देखते हैं तो ये समझने के लिए कि आखिर परदे पर भव्यता लाने के लिए किन बारीकियों का ध्यान रखना चाहिए। फिल्म के गाने ‘चलते चलते यूं ही कोई मिल गया था..’ में जब कैमरा फव्वारे के पानी के बीच से होकर निकल जाता है, तो ये भंसाली जैसे फिल्मकारों के लिए रिसर्च का विषय बन जाता है कि आखिर ऐसा कैसे किया गया होगा। अगर आप फिल्म ‘पाकीज़ा’ का एक और गाना ‘इन्हीं लोगों ने ले लीना दुपट्टा मेरा’ देखेंगे तो इसका सेट देखकर हैरान रह जाएंगे। इस गाने में कमाल अमरोही के निर्देशन की असल बुलंदियां भी देखने को मिलती हैं। अपने कोठे पर नाचती साहिबजान के पीछे तमाम कोठे और दिखते हैं। छज्जों पर नाचती तमाम दूसरी नर्तकियां भी दिखती हैं। सब एक लय में हैं। सब एक ताल में हैं। कमाल अमरोही ने दर्जन भर से ज्यादा नर्तकियों को इस सीन में कैसे साधा होगा, ये वही समझ सकता है जिसने कैमरे के पीछे बतौर निर्देशक एक पल भी अगर बिताया हो।

परदे पर मीना कुमार बनकर नाचीं पद्मा खन्ना
फिल्म ‘पाकीजा’ की कहानी और कैमरे का कमाल ऐसा कि 16 जुलाई 1956 को शुरू हुई फिल्म जब 4 फरवरी 1972 को रिलीज हुई तो कोई भी दर्शक ये न पकड़ पाया कि परदे पर कहां असली मीना कुमारी हैं और कहां उनकी डुप्लीकेट बनकर नाचतीं पद्मा खन्ना। फिल्म का वो मशहूर संवाद तो आपको भी याद ही होगा, ‘आपके पैर देखे। बहुत हसीन हैं। इन्हें जमीन पर मत रखिएगा। मैले हो जाएंगे।’ यहां भी ये पैर मीना कुमारी के नहीं बल्कि उनके डुप्लीकेट के थे। और ये सब हुआ इसलिए कि फिल्म की दोबारा शूटिंग शुरू होने पर मीना कुमारी की सेहत ऐसी नहीं थी कि वह फिल्म के सारे सीन शूट कर पातीं।

झगड़े में भी मोहब्बत का मान
फिल्म ‘पाकीज़ा’ की मेकिंग की बात चलने पर अक्सर उन दो चिट्ठियों की चर्चा जरूर होती है जो कमाल अमरोही ने मीना कुमारी को और मीना कुमारी ने कमाल अमरोही को लिखीं। दोनों साल 1955 में दक्षिण भारत घूमने निकले थे तो वहीं फिल्म ‘पाकीज़ा’ की कहानी दोनों ने मिलकर सोची थी। मोहब्बत की तलाश में भटकती एक ऐसी पवित्र औरत की ये कहानी है जिसका किसी दूसरे से मोहब्बत करना गुनाह है। फिल्म की शूटिंग के दौरान ही 1964 में दोनों में झगड़ा हुआ और मीना कुमारी अपने शौहर का घर छोड़ अपनी बहन मधु के पास रहने चली आईं। मधु की शादी उस जमाने में कॉमेडी के बेताज बादशाह महमूद से हुई थी। कमाल अमरोही उन्हें लेने आए। देर तक चली मान मनौव्वल के बाद भी जब मीना कुमारी ने कमरे का दरवाजा ना खोला तो कमाल अमरोही ये कहकर वहां से चले आए, ‘अब मैं कभी यहां वापस न आऊंगा। लेकिन आपके लिए मेरे घर के दरवाजे हमेशा खुले रहेंगे।’ प्यार में झगड़े के बाद भी कैसे एक दूसरे का मान सम्मान रखा जाता है, ये कमाल अमरोही और मीना कुमारी से सीखना चाहिए।

मोहब्बत का आखिर तक रखा मान
कमाल अमरोही और मीना कुमारी में उम्र का बड़ा फासला था। फिल्म ‘पाकीज़ा’ के रशेज (फिल्म की शूट की हुई रीलें) सुनील दत्त, नरगिस और तमाम दूसरे लोगों ने भी देखे और सबने कमाल अमरोही से यही गुजारिश की कि ये फिल्म पूरी होनी चाहिए। इस पर कमाल अमरोही ने मीना कुमारी को चिट्ठी लिखकर फिल्म पूरी करने की गुजारिश की। और, मीना कुमारी ने तुरंत जवाबी चिट्ठी लिखकर उनकी बात मान ली। लेकिन, शर्त यही रखी कि वह फिल्म का मेहनताना बस एक सोने की गिन्नी के सिवा कुछ न लेंगी। फिल्म दोबारा शुरू हुई तो पहले दिन फिल्माया गया गाना, ‘मौसम है आशिकाना’। मीना कुमारी का बढ़ा हुआ वजन छुपाने को उन्हें कुर्ता और लुंगी पहनाई गई। और, ये कुर्ता लुंगी उस दौर का सबसे मशहूर फैशन ट्रेन्ड हो गई। फिल्म पूरी हुई। कमाल और मीना दोनों ने प्रीमियर पर साथ साथ देखी और इसके बाद कमाल अमरोही की मंजू ने बस एक ही बात उनसे कही, ‘वादा करो, चांद! अब तुम दूसरी कोई फिल्म न बनाओगे।’

चलते चलते…
और, चलते चलते फिल्म ‘पाकीज़ा’ से जुड़ा एक किस्सा वहां का जहां इस फिल्म की शूटिंग हो रही थी यानी मध्यप्रदेश का शिवपुरी इलाका। हुआ यूं कि एक दिन शूटिंग से लौटते समय कमाल अमरोही की कार का पेट्रोल खत्म हो गया। मीलों दूर तक कोई पेट्रोल पंप था नहीं सो तय हुआ कि रात वहीं गुजारी जाए और सुबह कुछ इंतजाम किया जाएगा। यूनिट के लोग वहीं आसपास इंतजाम करके सो गए। रात को वहां डकैतों ने धावा बोल दिया। लूटपाट चल ही रही थी कि डाकुओं के सरगना अमृत लाल को कमाल अमरोही के साथ मौजूद महिला के मीना कुमारी होने का पता चल गया। फिर क्या? सारी बंदूके नीचे। और, डाकुओं का सरदार मीना कुमारी के कदमों पर। उसने सारा सामान भी वापस करा दिया। और, बदले में मांगा सिर्फ एक दस्तखत। ये ऑटोग्राफ मीनाकुमार की जिंदगी का सबसे यादगार ऑटोग्राफ रहा क्योंकि डाकुओं के उस सरगना ने ये दस्तखत मांगे थे अपने हाथ पर और इसे मीना कुमारी को लिखना पड़ा था चाकू की नोक से। बाइस्कोप में आज इतना ही, जल्द ही फिर मिलेंगे किसी और सुपरहिट फिल्म के किस्सों के साथ..!

With Thanks Refrence to: https://www.amarujala.com/photo-gallery/entertainment/bollywood/bioscope-with-pankaj-shukla-pakeezah-kamal-amrohi-meena-kumari-raaj-kumar-ashok-kumar-ghulam-mohammad?pageId=8

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