नूंह के गांवों में मीटिंग हुई, बाहर से लोग आए:दंगे से पहले हिंदू पड़ोसियों से कहा- घर में रहना, मार्केट भी बंद था
नूंह हिंसा: हरियाणा के नूंह में हिंसा हुए 10 दिन गुजर चुके हैं। 6 लोगों की मौत हुई, 70 लोग घायल हुए और अब तक 5 जिलों में 93 FIR दर्ज की गई हैं। 176 लोग गिरफ्तार किए गए हैं और 11 अगस्त तक इंटरनेट बैन है।
8 अगस्त को रेवाड़ी, महेंद्रगढ़ और झज्जर की 50 से ज्यादा ग्राम पंचायतों ने गांव में मुस्लिम व्यापारियों के आने पर रोक लगा दी। गांव में रह रहे मुस्लिमों से पहचान पत्र पुलिस को देने के लिए कहा गया है।
हांसी से एक वीडियो सामने आया है। इसमें भगवा गमछा पहने लोग रैली निकाल रहे हैं और चेतावनी दे रहे हैं कि किसी मुसलमान को नौकरी पर रखा है, तो दो दिन में निकाल दें। ऐसा नहीं किया गया तो दुकानदारों का बहिष्कार किया जाएगा। 31 जुलाई की हिंसा के बाद हिंदू-मुस्लिमों के बीच तनाव है। बात यहां तक क्यों पहुंची, इसकी छानबीन के लिए दैनिक भास्कर नूंह पहुंचा…
नूंह हिंसा: बाहर से लोग आए थे, मामन खान ने स्वागत की तैयारी की थी
31 जुलाई को नूंह के नलहरेश्वर मंदिर से ब्रजधाम के लिए निकली यात्रा 2.5 किमी ही चली थी कि तिरंगा चौक पर पथराव हो गया। इसी तिरंगा चौक के दाईं तरफ है खेड़ला गांव। इस गांव के लोगों ने ये दंगा होते देखा था, इसलिए हम सबसे पहले यहीं पहुंचे। गांव में दहशत का माहौल है, 3 अगस्त को गांव से 12 साल से लेकर 22 साल तक के 7 लड़कों को पुलिस ने उठा लिया।
यहां हमारी मुलाकात शब्बीर खान से हुई। पहले तो वे कैमरे के सामने आने से बचते रहे। फिर दंगा क्यों भड़का, इस सवाल पर बोले- ‘एक भीड़ आई थी, जो सिर्फ आधे घंटे में एक किमी के दायरे में फैल गई। एक घंटे में तो 2-3 किमी, जहां तक नजर जा रही थी सिर्फ भीड़ थी।’
शब्बीर आगे बताते हैं, ‘हम तो शांत थे, पता था ये आगे जाएंगे तो मामन खान (कांग्रेस विधायक) बैठा है, स्वागत के लिए। सबसे पहले अफवाह उड़ी कि यात्रा में किसी बच्चे का एक्सीडेंट हो गया है। भीड़ इकठ्ठा होने लगी। बजरंगियों के हाथों में तलवारें थीं, लेकिन इधर से भीड़ बढ़ी, तो वे भाग गए।’
मामन खान ने मोनू मानेसर पर हरियाणा विधानसभा में भी भाषण दिया था, जो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुआ था। मामन खान ने कहा था कि अबकी बार मोनू मानेसर मेवात आया, तो उसको प्याज की तरह फोड़ देंगे।
क्या इस गांव के लोग इकट्ठा हुए थे? शब्बीर बोले, ‘नहीं, सब बाहरी थे। यहां का कोई नहीं था।’ क्या किसी के हाथ में हथियार थे? जवाब मिला- ‘बिल्कुल नहीं। डंडे-बांस तो थे, लेकिन बंदूक वगैरह नहीं थी। बजरंगियों के हाथों में तलवारें थीं, चाकू थे। वे तो यात्रा में सरेआम सब लहरा रहे थे। फिर इधर भीड़ भड़क गई, तो इन्होंने पत्थरों से जवाब दिया।’
वीडियो जारी कर बोला था- तुम्हारा जीजा आ रहा है, लोग भड़के हुए थे
हिंसा क्या अचानक भड़की थी? इसके जवाब में शब्बीर कहते हैं, ‘सबने वो वीडियो देखा था जिसमें कह रहे थे तुम्हारा जीजा आ रहा है, मेवातियों स्वागत के लिए खड़े हो जाओ। मोनू मानेसर ने पहले से ही हमारे 4-5 आदमियों का कत्ल कर रखा है। उसे लेकर सभी लोग गुस्से में थे।’
क्या यात्रा में आए लोगों ने हमला किया था? शब्बीर बताते हैं, ‘नहीं, बस तलवारें लहराईं थीं। उन्हें लगा होगा कि अगर हमला करेंगे, तो भीड़ उन्हें छोड़ेगी नहीं। इसलिए वे भाग गए। हम जानते थे कि आगे इनका स्वागत हो जाएगा। कोई न कोई तो जवाब देगा ही। आगे मामन खान था, वह पहले ही सदन में बोल चुका है। तो हमें पता था कि वही समझेगा इसे कि इनका स्वागत करें या दावत दें।’
शब्बीर ने इसके बाद कैमरा बंद करवा दिया। उसके बाद बोले- ‘मेरे गांव में भी लोग जुनैद, नासिर, वारिस की हत्या से गुस्से में थे। अगर मोनू हाथ लगता, तो बचता नहीं। उस दिन दुकानें भी बंद थीं, क्योंकि हमें मालूम था कि जीजा का स्वागत तो जरूर होगा।’
नूंह हिंसा से पहले लोग इकठ्ठा हुए थे, क्या करेंगे, इस पर मशविरा हुआ
खेड़ला गांव में हमारी मुलाकात मीना (बदला हुआ नाम) से हुई। मीना कैमरे पर नहीं आना चाहती थीं। कहने लगीं कि कल ही पुलिस 7 लोगों को उठा ले गई है, मैं कोई परेशानी नहीं चाहती।
मीना इससे ज्यादा बोलतीं, तभी अगल-बगल खड़े लोग इशारों में उन्हें चुप रहने की हिदायत देने लगे। मीना चुप हो गईं, फिर आगे कुछ नहीं बोलीं।
गांव में थोड़ा आगे चले तो कुछ बच्चों से मुलाकात हुई। हमने पूछा, ‘जब दंगा हुआ, तुम लोग कहां थे? उन्होंने कहा- हमें अंदर रहने के लिए कहा था।’ बच्चे आगे कुछ बोलते उससे पहले उनकी अम्मी उन्हें लगभग घसीटते हुए ले गई।
आस-पास खड़े लोग कहने लगे, ‘आज ही कुछ बच्चे उठा लिए गए हैं। अगर इनको आपने दिखाया तो ये भी उठा लिए जाएंगे।’
हिंसा से पहले मेवात इलाके के गांवों में कौन सा मशविरा हुआ था, ये सवाल अब भी कायम था।
गांव के हिंदू बोले- मुस्लिमों की मीटिंग हुई थी, मैसेज मिला था, घर से मत निकलना
खेड़ला गांव में एक वाल्मीकि बस्ती भी है। हम वहां पहुंचे। बस्ती में सन्नाटा था। एक बुजुर्ग ने हमसे कहा, ‘हमसे कुछ मत पूछिए। इस गांव में हिंदुओं के कुछ ही घर हैं। अगर किसी को पता लगा कि आप इधर भी आईं थीं, तो परेशानी बढ़ जाएगी।’
ऑफ कैमरा उस बुजुर्ग ने बताया, ‘एक दिन पहले गांव के मुस्लिम समुदाय की बैठक हुई थी। ये मैसेज हम तक भी पहुंचा था कि अपने घरों से बाहर न निकलें। सुबह से ही गांव में बाहर से लोग गाड़ियों में भर-भरकर आ रहे थे। ज्यादातर लोग बाइक और ट्रैक्टर-ट्रॉलियों से आए थे। उन्होंने सुबह चाय-पानी भी यहीं किया। ज्यादातर दुकानें सुबह से ही बंद थीं। हमें लगने लगा था कि यह यात्रा पूरी नहीं होगी।’
बुजुर्ग आगे बताते हैं, ‘मोनू मानेसर के लिए नासिर-जुनैद की हत्या के बाद से लोगों में बहुत गुस्सा है। उस पर जीजा वाली बात ने इन लोगों को और नाराज कर दिया। कई हिंदू परिवार तो यहां से पहले ही डरकर चले गए थे।’
हम निकलने लगे तो बुजुर्ग ने हाथ जोड़कर कहा, हमारा नाम मत लीजिएगा। अगर बात बाहर पहुंच गई, तो दंगों में हमारे घर भी जल जाएंगे।’
हम तिरंगा चौक से कई सवाल लेकर नलहरेश्वर मंदिर की तरफ बढ़े। चौक से एक किलोमीटर दूर सिटी थाना है। भीड़ इकट्ठा हो रही थी और बाहर से लोग गांव में आ रहे थे या मीटिंग हो रही थी, तब पुलिस कहां थी। भीड़ आई, पथराव हुआ, दंगा भड़का, लेकिन पुलिस उस दौरान कहां थी।
आसमान काला था और गोलियों की आवाज गूंज रही थी…
नलहरेश्वर मंदिर में हमारी मुलाकात पुजारी दीपक शर्मा से हुई। दीपक बताते हैं, ‘यात्रा के दिन लोग सुबह 9 बजे ही मंदिर पहुंच गए थे। स्नान, ध्यान और खाना-पीना करने के बाद यात्रा आगे बढ़ी। करीब 12.30 बजे लोग यहां से निकले। मैं मंदिर में ही था। शाम के 4 बजे होंगे कि एकदम से भगदड़ मच गई। जो लोग गए थे, वापस मंदिर के भीतर भागते हुए आ रहे थे। बाहर से गोलियों की भी आवाजें आ रही थीं।’
दीपक का आरोप है कि गोलियां मंदिर के दाहिनी तरफ मौजूद पहाड़ियों से चलाई जा रही थीं। दैनिक भास्कर के पास उस वक्त का एक वीडियो भी है, जब यात्रा में मौजूद लोग मंदिर के बाहर गाड़ियों के पीछे छिपे थे और फायरिंग की आवाज आ रही थी।
मंदिर के रास्ते में दुकानें बंद थीं, इसलिए शक हुआ था
पुजारी से बातचीत के बाद हमने ऐसे शख्स को ढूंढना शुरू किया, जो उस दिन यात्रा में शामिल नहीं था, लेकिन मंदिर में था। हमारी मुलाकात सरस्वती लोहिया से हुई। वे 31 जुलाई को घिटोरनी से मंदिर में जल चढ़ाने आई थीं।
सरस्वती ने फोन पर बताया, ‘करीब 4 बजे होंगे। मैं मंदिर में थी। मेरी गाड़ी बाहर खड़ी थी। अचानक गोलियों की आवाजें गूंजने लगीं। मैं बाहर आई तो देखा भगदड़ मची थी। औरतें-बच्चे सब भाग रहे थे। उस दिन लगा कि बस मेरा अंत आ गया है। हम पुलिस को फोन कर रहे थे। 3-4 घंटे तक यही चलता रहा, फिर पुलिस आई।’
वे आगे कहती हैं, ‘एक चीज जो अजीब थी, जब हम सुबह मंदिर की तरफ बढ़ रहे थे। रास्ते की सारी दुकानें बंद थीं। अजीब लग रहा था कि इतनी बड़ी यात्रा और दुकानें बंद! कुछ अजीब लग रहा था। मैंने ध्यान नहीं दिया था। मन अब तक बेचैन है। जलती गाड़ियां, काला आसमान, गोलियों की गूंज और पत्थरों की बौछारें, अब भी मुझे डरा रही हैं।’
मंदिर के पास बने घरों में रहने वाले लोग अब भी डरे हुए
मंदिर से करीब 800 मीटर की दूरी पर 8-10 हिंदू परिवारों के घर हैं। वहां हमारी मुलाकात धरम सिंह से हुई। हमने सवाल किया, क्या पहाड़ पर पहले से ही लोग छिपकर बैठे थे? धरम सिंह के मुताबिक, ‘नहीं, पीछे से लोग आए थे। 4 बजे गोलियों की आवाजें आने लगीं। पीछे से भीड़ गोलियां चला रही थी। लोग जान बचाकर मंदिर में भाग रहे थे। कुछ लोग हमारे घरों की तरफ भी आए। फिर मंदिर की तरफ भागे।’
धरम सिंह आगे बताते हैं, ‘2-3 घंटे तक बस गोलियों की आवाजें आ रही थीं। हम बाहर निकले तो आसमान पूरा काला था। धुआं ही धुआं था।’
इन्हीं घरों में से एक में मंगूराम रहते हैं। हमने उनसे पूछा कि क्या पहले से मंदिर के आसपास पहाड़ियों में लोग मौजूद थे? इस सवाल के जवाब में मंगू ने भी ना कहा। उन्होंने बताया कि भीड़ पीछे से आ रही थी।
नूंह हिंसा वाली जगह मिली पत्थरों से भरी बोरियां
मंदिर से कुछ ही दूर जले टायर, गाड़ियों की नेमप्लेट, टूटे शीशे, बिखरी पड़ी चप्पलें उस दिन की कहानी खुद कहती हैं। यहीं पत्थरों से भरी बोरियां रखी नजर आईं। बोरियों में रखे पत्थर मंदिर के आसपास के नहीं थे। मंदिर से करीब दो किलोमीटर तक न तो कोई कंस्ट्रक्शन चल रहा था और न ही पत्थरों का कोई ढेर था। ये शक पैदा करने वाली बात थी।
पुलिस के दो बड़े अफसर एक साथ छुट्टी पर क्यों…
नूंह में जिस दिन दंगा हुए, जिले के दो बड़े अफसर गायब थे। जिले के SP वरुण सिंगला और डिप्टी कमिश्नर प्रशांत पंवार। प्रशांत पंवार 28 जुलाई यानी यात्रा से महज 3 दिन पहले छुट्टी पर गए, जबकि वरुण सिंगला 23 जुलाई से छुट्टी पर थे।
सवाल ये उठता है कि क्या इन्हें यात्रा की जानकारी नहीं थी? हमने दोनों अधिकारियों को कई बार फोन किया, लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया। दोनों का ट्रांसफर किया जा चुका है। वरुण सिंगला की जगह नरेंद्र बिजारणिया नूंह के SP हैं और प्रशांत पंवार की जगह धीरेंद्र खड़गटा आए हैं।
इन दंगों को रोकने में हरियाणा पुलिस से क्या गलती हुई, ये समझने के लिए हमने यूपी के पूर्व DGP विक्रम सिंह से बात की। विक्रम सिंह दो बड़े अधिकारियों के छुट्टी पर होने पर कहते हैं, ‘ऐसा हो ही नहीं सकता कि इतनी बड़ी यात्रा के लिए एक दिन पहले अनुमति ली गई हो। वैसे भी हर थाने में एक त्योहार रजिस्टर होता है।’
यात्रा की अनुमति मिलती कैसे है? जवाब मिला-‘ ऐसी यात्रा, जिसमें हजारों लोगों के इकट्ठे होने की संभावना हो, उसके लिए कम से कम एक हफ्ता पहले तो सूचना थाने में देनी होती है। एक हफ्ता इसलिए क्योंकि इंटेलिजेंस अपनी रिपोर्ट तैयार कर थाने को सौंपता है। फिर थाने की पुलिस भी इस यात्रा से जुड़े सभी पहलुओं की छानबीन करती है। इसके बाद सुरक्षा इंतजाम तय होते हैं। तब जाकर कहीं अनुमति मिलती है।’
विक्रम सिंह कहते हैं, ‘देखिए जो अधिकारी छुट्टी पर गए, उनसे ज्यादा दोषी उन्हें छुट्टी देने वाला सुपरवाइजर है।’ ऐसे मौकों पर तो छुट्टियां कैंसिल होती हैं, दी नहीं जाती। पुलिस को लोकेशन की भी जानकारी थी। मंदिर अगर पहाड़ियों के बीच था, तो कुछ पुलिसवालों को पहाड़ियों पर तैनात होना चाहिए था, जहां से सब कुछ दिख सके।’
‘छत के ऊपर कुछ पुलिसवालों को रखना चाहिए था। हालांकि, लोगों ने बताया है कि पुलिस तो थी ही नहीं। हेट स्पीच के कई वीडियो सोशल मीडिया पर थे, न कोई कार्रवाई हुई और न ही किसी को पकड़ा गया। ऐसा क्यों नहीं किया गया, ये जांच का विषय है।’
भास्कर इन्वेस्टिगेशन में सामने आए 5 सवाल…
1. आधे घंटे में कैसे इकट्ठा हुई हजारों बाहरियों की भीड़?
जहां दंगों की शुरुआत हुई, वहां मौजूद गांव के लोगों ने बार-बार कुछ ही समय में इकट्ठा हुई भीड़ का जिक्र किया। यह भी कहा कि भीड़ स्थानीय लोगों की नहीं थी, सब बाहरी थे। आखिर ये बाहरी कौन थे, कहां से आए और पुलिस इस दौरान कहां थी।
2. नलहरेश्वर मंदिर के रास्ते की दुकानें बंद थीं, तो पुलिस को शक क्यों नहीं हुआ?
भास्कर इन्वेस्टिगेशन के दौरान ये बात भी कई बार घूम-फिरकर सामने आई कि गांव में लोगों को बाहर न निकलने की हिदायत पहले ही दे दी गई थी। उस दिन दुकानें बंद थीं। गांव में मीटिंग हुई, लोग आए और मार्केट भी बंद था। ऐसे में पुलिस या लोकल इंटेलिजेंस को कुछ पता कैसे नहीं चला।
3. खेड़ली गांव में बैठक किसने की, घरों से न निकलने की हिदायत किसने दी?
गांव में मीटिंग किन लोगों ने बुलाई थी। ये बैठक किसने ली, कौन लोग इसमें शामिल थे। इन्वेस्टिगेशन के दौरान दंगों से पहले किसी मैसेजिंग नेटवर्क के इस्तेमाल में होने का पता चलता है। इसी से वीडियो भेजे गए, बच्चे के एक्सीडेंट की अफवाह उड़ी और भीड़ इकठ्ठा की गई। मीटिंग के दौरान घर में रहने के मैसेज भेजे जाने के वक्त पुलिस कहां थी।
4. मौके पर पत्थरों से भरी बोरियां कहां से आईं?
भास्कर की टीम मौके पर पहुंची। वहां हिंसा की निशानियों के बीच पत्थर भरी बोरियां बिखरी पड़ीं थीं। यह पत्थर बोरियों में भरकर कौन लाया? पहले से पत्थर यहां छिपाए गए थे या फिर दंगाई अपने साथ लाए थे? मंदिर के आस-पास इस तरह की बोरियां मौजूद थीं।
5. जिले के दो बड़े अधिकारियों को यात्रा से पहले किसने दी छुट्टी?
इतनी बड़ी यात्रा। इतने सारे मैसेजेस, हेट स्पीच। एक दिन पहले मोनू मानेसर के दो वीडियो वायरल हुए। कांग्रेस विधायक मामन खान और मुस्लिम पक्ष के कई लोगों के वीडियो वायरल हुए। 20 जुलाई से हेट स्पीच के कई वीडियो वायरल थे। पाकिस्तानी यूट्यूबर का नाम भी सामने आ रहा है।
ये सब हो रहा था और स्थिति नाजुक थी, तो नूंह SP और DC को कैसे मिली छुट्टी? पुलिस ने सोशल मीडिया पर वायरल वीडियोज को टाइम से क्यों नहीं हटवाया, ये सब होने क्यों दिया।
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